الأربعاء، 7 فبراير 2018

سَــحابةُ  عُـمْـرِنـا 
.........................
بقلم و ريشة / الشاعر و المبدع عـلي حيدر
<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<

هـهُـنـا  ..
تحت  فـضولٍ  لـلـقـمَـرْ
كـنا ..  نسـامِرُ  نـفـسَـــنا
أنتِ ..
يا طفلة"  تحوي  الصبابةَ 
يا ( أنا )  .

،،،،،،،       ،،،،،،،       ،،،،،،،

دجى"  ..  تزاحمَ  بالنجومْ
وما  بعـدَ  الهوى  المحمومْ
غـياهِـبُ  .. 
كـشــرَتْ  ..  لـِتُـبـعِـدَ  بعـضَـنا

،،،،،،،       ،،،،،،،       ،،،،،،،

ورحلـتِ  ..
مـثـلَ  النجمةِ  الشـهـباءِ
مِـن  كـبـدِ  السـما
مَـن  ذا  يواسي  هـمّـنـا  ؟

،،،،،،،       ،،،،،،،       ،،،،،،،

من  ذا  الذي  يَـرْثي  مُـفـارِقَ  نـفـسِــهِ ؟
سـنـينُ  الهـمسِ  ما عادتْ
ولا سـطحُ  ..  الـلِـقـا
عِـتـا بٌ   ..
ود مـعٌ  ..  يُـقـبّـلُ  وجنة"   مِـثـلَ  السِـقا  :-
( قـد  كـنـتَ  ترْمُـقها  ..  فأ يـن  عـهـودُ نا  ؟
مزدانة"  ..  تبدو  أمامكَ
فإذا  رحلتَ  تخـدّرتْ
ثوب  الغوايةِ  .. قـد  علاها  تارة"
وأخرى  قـد  بدى  ثوب  التقى 
غَــيْــداءٌ  ...
تصَـيّـدُ   ..   في  أزِقـةِ  حـيّـنـا  )

،،،،،،،       ،،،،،،،       ،،،،،،،

ياليـلنا  .. 
فـديـتُـكَ  عُـدْ
بأجواءٍ  غـد تْ  ،  ذ كـرى
بـعـمـرٍ  مَـخْـمَـليّ
يزهـو  ..  وبســماتٍ  تَـعـابَـقُ   بالهَـنا
ما  عا د  ..  يـشـــد و   ،   حُـبّـنا
ومَـضَـتْ   حـكـا يا تُ    الربيعْ
مع  الربيعْ
تَـحْـذ و  ..  سـحابةَ   عُـمْـرِنا

،،،،،،،       ،،،،،،،       ،،،،،،،

مَـن  ذا   الذي   يَـرْثي
خـريـفـا"   ..
( ومـا سِــحَ   د معةٍ   مِـن   وجنةٍ )
وحـيـدَ  الـدَ ربِ  ..
يمضي  يُـهَـرْوِلُ  ..  لـلـفـنا  .

<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<<

ليست هناك تعليقات:

إرسال تعليق